119 कुंजपुर
( The poem titled 119 कुंजपुर is written by Bharti Tewari)
संयुक्त परिवार था हमारा कितना बडा ,
जडजा माँ काखियों के दम पर खडा ।
बाबूजी थे घर के मुखिया बडे,
उन की सेवा पर सब तत्पर खडे।
तकली कातना/ रामायण करवाना उनके शौक थे,
वो कचहरी में अरायजनवीस थे।
हुक्का क्लब के पास हमारा वो ठौर था ,
कितना अच्छा वो बचपन का दौर था ।
हुं बा (ताउजी) का भी अपना ही रूआब था,
प्रयाग संगीत विद्यालय उनकी पहचान था ।
कक्का को हमारे औषधियों का ज्ञान था
लवंगादी व चूरन उनकी पहचान था ।
छोटे कक्का शास्त्रीय संगीत के थे ज्ञाता।
उनसे संगीत सीखने हर कोई था आता।
मंगल,शनि को सुन्दरकाण्ड का पाठ था होता
अक्सर घर में महफिलो का दौर था चलता ।
भुट्टा पार्टी व होलियों की रौनक का क्या कहें
बैठकी होली को लोग अब तक याद करें
होल्यारों की टोली गली मौहल्लों में थी घूमती
चंदा इकट्ठा करके आलू और गुजिया खाने को मिलती ।
रसोई में हमारी रोज त्यौहार सा होता
कौन आ के खा गया है इसका न पता चलता ।
चूल्हे पर हर वक्त बर्तन चढे रहते
जडेजा और चाची रसियार बने रहते ।
चटनी मसाले पीसना मेरी माँ का काम था,
बच्चों को सम्भालना उसके ही नाम था।
बर्तनों का जिम्मा चाची के पास था,
पर पानी भरना उसका काम खास था।
स्वादिस्ट खानों का था अपना ही मजा,
डुबके,ठठवाणी,चुडकाणी बडी भात से सजा ।
चाय का बर्तन हरदम चूल्हे पे चढा रहता।
मेहमानों से हरदम बैठक भरा रहता ।
कितने भाई बहिन थे इसका न भान था ।
कौन सगा है कौन चचेरा ये भी न ज्ञान था।
भाईयों की हुई शादी कुनबा बडा हुआ ।
भाभियों के आने का शुरू दौर अब हुआ।
आँगन में अक्सर नई किलकारी गूँजती,
भतीजी, भतीजा आने की खबरें हमें मिलती।
इतने बडे परिवार में हम पले बढ़े हुए ।
एक दूसरे के सुख-दुःख को मिल कर सहे हुए ।
कितना सुन्दर हमारा वो परिवार था ।
119 कुंजपुर हम सब का प्यार था।