यार बब्बा…
( The poem titled यार बब्बा… is written by Bharti Tewari)
गिर्दा तुम तो गिर्दा ठहरे, लम्बा कुर्ता ऊपर से वास्कट , यही तुम्हारी पहचान । यार बब्बा... न लाग, न लपट, न चाल ,न चतुराई, तुम्हें पसंद थी बीडी और भुनी पत्ती की चाय। तुम्हारे घुंघराले छल्लेदार बालों सी, लच्छेदार तुम्हारी बातें । मखमली घास के सरीखे तैरती , तुम्हारी खनकती आवाज। जिस मंच से गूंजती, वहाँ तुम ही तुम दिखाई देते । तुम ही तुम सुनाई देते। यार बब्बा… कितने किस्से, कहानी, फसक और उसमें पहाडी ठसक। दिखाई देता था तुम्हारी कविताओं में । तुम लिख देते थे उन्हें बीडी के बंडलों में , अखबार के टुकड़ों में , यार बब्बा … सैकडो पहाडी धुने जो फक्कडपन शागिर्दी में सीखी थी तुमने ओ दिगो लाली जोड़ देते थे गीतों में अपने फैज़ गालिब और धूमिल को शामिल कर लिया करते थे अपनी बातों में जैसे अगल बगल घूमते हो तुम्हारे यार बब्बा... जन सरोकारों को जनगीतों में पिरोकर, पहुंचा देते थे जन जन तक । अपनी मधुर आवाज़ में होली जब सुनाते थे तो चारू चन्द्र जी की हिम परिया सचमुच उतर आती थी जमीन पर यार बब्बा ..