तिश्नगी

तिश्नगी

( The poem titled तिश्नगी is written by Bharti Tewari )

अक्सर ख्वाहिशो से भटक जाती है जिन्दगी
इसलिए फरमाइशें हम कम कर रहे हैं ।
यूं तो सबकुछ दिया है तुमने
तेरी  रहमों-करम पर ही  तो गुज़र कर रहे हैं ।
बरदाश्त नहीं होता  इतना  प्यार  हमसे
तेरी नफरतों पे भरम कर रहे हैं ।
तुमसे इल्तिजा है न कैफ़ियत पूछो मेरी
हम जिन्दगी जी लेने की गुजारिश कर रहे है
ये जो चंद लम्हे ही मिले हैं जिन्दगी के  हमें
क्यों रूठ कर उन्हें कम कर रहे हैं ।
आ मिल कर बांट ले इस तिश्नगी को मेरे रहबर
आजकल दरिया भी  नमक बन रहे हैं ।

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