कोहरा है

कोहरा है

( The poem titled कोहरा है is written by Bharti Tewari )

सावन ,भादो में जब बरसे काली घटाऐं झम झम झम
तब स्निग्ध,सरल,शांत जल में  आग लगा दे,  वो कोहरा है ।
स्थिर चित्त से बैठे हरित श्रृंगारमय विशाल पर्वतों को,
जो श्वेत पुष्प  सा हार पहना कर अलंकृत कर जाये वो कोहरा है ।
उम्र सरीखी  लम्बी  सडकों पर बेमक़सद सी दौड़  लगाकर,
जो अनजानी  मंजिल में जाकर ओझल हो जाये वो कोहरा  है ।
कभी पेडो के झुरमुट के  बीच जलती  गीली लकडी सा सुलगकर
जो हरे भरे जंगल में  धुएं का अहसास कराये वो कोहरा है ।
उमड घुमड कर नभ में  छाये  श्याम धवल से  मेघों को
जो खींच धरती पर लाकर नभ- धरा का प्रेम  बढाए वो कोहरा है
ऊंचे पर्वतों की तलहटी  पर बसे गाँवो को,
जो बादलों  की रजाई  ओढाकर हमें  बादलों के देश पहुँचाए ,वो कोहरा है ।
प्रकृति की इस अनुपम छटा को देख, मन में कोई  भाव न आये,
तो मानो मन मस्तिष्क में भी छाया रहने वाला भाव भी कोहरा है ।

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