कोरोना
( The poem titled कोरोना is written by Bharti Tewari)
कोरोना तुम तो इश्क निकले,
मुँह छिपा के फिर रहे थे मास्क में हम तो
और तुम कब आये पता ही न चला
सुना था कि इश्क और मुश्क
छिपाये ही नहीं छिपते
और तुम ने तो आते ही मुनादी करा दी।
माना कि इश्क में भूख नींद और चैन सब चला जाता है ।
तुम्हारे आगोश में समाते ही हम सब भूल बैठे ।
चुरा ले गए तुम हमी को हम से
हम कहाँ हैं अब ये ही भूल बैठे ।
बडे खुश रहा करते थे अपनो के बीच हम
और तुम ने हमें तखलिया कर दिया ।
कई अल्फाज़ चुने हमने तेरी नवाजिश को,
पर कईयों को तूने जिन्दगी से फना कर दिया
रास्ते खुद ही तबाही के निकाले हमने
बेपरदा हो कूचे से निकले तेरी
अब गैरों से क्या शिकवा करें हम। ।
जब अपने ही जख्म दिया करते हैं