आषाढ़ की छटा

आषाढ़ की छटा

( This poem titled आषाढ़ की छटा is written by Bharti Tewari)

एक बादल छोटा सा,
यूँ आया पहाड़ में,
मानो चूल्हे में गीली लकडी का धुआँ ।
फिर अलमस्त सा बढता गया ,
एक छोर से दूजी ओर,
छा गया धुन्ध सा।
आगोश मे ले गया अपने,
मन्दिर मस्जिद स्कूल व घरों को।
फैल गया धुन्ध सा।
समेट ले गया आकाश के विस्तृत क्षेत्र को,
उतरता चला गया झील की अतल गहराइयों में,
धीरे-धीरे बढ़ता ही चला आ रहा है,
हमारी ओर कोहरे की तरह।

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