विकास बनाम आपदा
(The Poem Titled विकास बनाम आपदा is written by Bharti Tewari)
देखकर सडकों की रंगीनियों को, पलायन अब पत्थर भी करने लगे हैं । सडकों का चौडीकरण देखकर के पर्वत खुद को समतल करने लगे हैं । बादलों का अट्टहास बदस्तूर है जारी घनीभूत पीड़ा को कम कर रहे हैं नदियों में बांध बना देखकर के, हिमनद भी अब तो पिघलने लगे हैं । झीलों में अब तो सिमट गई है नदियां समुन्दर शहरों को निगलने लगे हैं । बने जो जंगल कंक्रीट के तो, बडवाग्नी से देखो घर जल रहे हैं । पशुओं का गाँवों में है बोलबाला , आदमी आसमां का रूख कर रहे हैं ।